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उपा॑स्मै गायता नरः॒ पव॑माना॒येन्द॑वे। अ॒भि दे॒वाँ२ऽइय॑क्षते ॥६२ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उप॑। अ॒स्मै॒। गा॒य॒त॒। न॒रः॒। पव॑मानाय। इन्द॑वे। अ॒भि। दे॒वान्। इय॑क्षते ॥६२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:33» मन्त्र:62


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब पढ़ने-पढ़ानेवाले कैसे वर्त्तें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (नरः) नायक अध्यापकादि लोगो ! तुम लोग (देवान्) विद्वानों को (अभि) सब ओर से (इयक्षते) सत्कार करना चाहते हुए (अस्मै) इस (पवमानाय) पवित्र करनेहारे (इन्दवे) कोमल विद्यार्थी के लिये (उपगायत) निकटस्थ हो के शास्त्रों को पढ़ाया करो ॥६२ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे जिज्ञासु लोग अध्यापकों को सन्तुष्ट करना चाहते हैं, वैसे अध्यापक लोग भी उनको पढ़ाने की इच्छा रक्खा करें ॥६२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथाध्यापकाध्येतारः कथं वर्त्तेरन्नित्याह ॥

अन्वय:

(उप) (अस्मै) (गायत) शास्त्राणि पाठयत। अत्र संहितायाम् [अ०६.३.११४] इति दीर्घः। (नरः) नायकाः (पवमानाय) पवित्रकर्त्रे (इन्दवे) ऋजवे विद्यार्थिने (अभि) (देवान्) विदुषः (इयक्षते) यष्टुं सत्कर्त्तुमिच्छते। अत्र छान्दसो वर्णलोप इत्यभ्यासयकारलोपः ॥६२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे नरो ! यूयं देवानभीयक्षतेऽस्मै पवमानायेन्दव उपगायत ॥६२ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा जिज्ञासवोऽध्यापकान् सन्तुष्टान् कर्त्तुमिच्छन्ति, तथाऽध्यापका अपि तानध्यापयितुमिच्छेयुः ॥६२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे जिज्ञासू लोक अध्यापकांना सर्व प्रकारे संतुष्ट करू इच्छितात तसे अध्यापकांनीही विद्यार्थ्यांना शिकविण्याची इच्छा बाळगावी.